※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 26 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -६-

 ।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
26 April 2015, Sunday


दूसरी बात यह है की जिसे आप अपनी यथाशक्ति कर सकते है-हम गाय का दूध पीते है, इसलिए हमे हर एक प्रकार से गाय की सेवा करनी चाहिए जहाँ कही गौ-रक्षा आन्दोलन हो उसमे भाग लेना चाहिए, गायों की हिंसा बन्द हो जानी चाहिए कुछ लोग कहते है की यदि गाय कटना बिलकुल बन्द हो जायेंगी तो बूढी गायों को घास और चारा कहाँ से मिलेगा चारा पैदा करने वाले भगवान संसार में मौजूद है, भगवान् कही मरा नही है उसके भरोसे पर आप गौओं का पालन करे
इस विचार से तो यह सवाल पैदा हो सकता है की जो बूढ़े-बूढ़े आदमी हो गए है, उनको मार डालना चाहिए; क्योकि वे निक्कमे हो गए वे काम तो कुछ करते नही, अन्न खा जाते है, जवान आदमी के हिस्से का अन्न खा जायेंगे तो जवान आदमी खाने बिना मरेंगे, बूढ़े आदमी को खिलाने से कोई जवान मरा है आज तक ? सब बेवकूफी की बात है, बेसमझी की बात है इतने जंगल हमारे हिन्दुस्तान में पड़े है, लाखों गायें जंगलों में रह कर अपना जीवन निर्वाह कर सकती है, घास खा कर जी सकती है, इसलिए उन गायों को हम जंगलों में छोड़ दे तो अपनी पूरी आयु पाकर वे मरेंगी और चरेंगी जंगलों में   और  दूसरी बात यह है की उन गायों को हम खेत में रखकर चराए तो आप हिसाब लगा कर देखे गऊ से जो गोबर होता है, उसी तथा जो गाय मूत्र करती है उससे खेती की उपज में वृद्धि होती है गौमूत्र से खेती अधिक पैदा होती है एक मन खाद दी जाती है तो उसी कई मन अनाज पैदा होता है ......शेष अगले ब्लॉग में            

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!