※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -७-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
27 April 2015,Monday


दूसरी बात चारा घास और अन्न सब पैदा होता है गाय जो कुछ खाती है उसके अनुसार स्वयं खाद पैदा कर देती है , तीसरी बात यह है की भगवान् स्वाभाविक ही वर्षा करते है संसार में जितने भी प्राणी है, पशु-पक्षी, कीट-पतंग सबके लिए भगवान् सोच-समझकर हिसाब लगा करके वर्षा और अन्न पैदा करते है और आवश्यकता होती है तो उससे अधिक भी पैदा करते है फिर अपने को क्या चिंता है ! आज यदि वर्षा न हो तो क्या जल से खेती करके हम जी सकते है यह सोचना चाहिए की संसार में जो कुछ काम हो रहा है वह भगवान् की नजरो में हो रहा है, ऐसा सोच कर भगवान् पर इतना तो भरोसा करना ही चाहिए की जो पैदा करता है वही जिलाता है और समय पर उसे समाप्त करता है हम बीच में पड़ कर उसकी क्यों पंचायत करे इसलिए हर एक प्रकार से हमे गऊ की रक्षा करनी चाहिए इसमें हमलोगों को केवल निमित बनना है, करने वाले तो सब भगवान् है, मेरा किया होता क्या है ? भगवान् अर्जुन गीता में कहते है की ‘हे सव्यसाची अर्जुन ! तू निमितमात्र हो जा; क्योकि बहुत से योद्धा तो मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए है, तू नही भी मारेगा तो भी सब मरेंगे, मैं तुम्हे केवल निमित बनाता हूँ
‘निमितमात्रं भव सव्यसाचिन
‘ऋतेअपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
भगवान् हम लोगों को केवल निमित बनाते है ......शेष अगले ब्लॉग में     
       
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!