※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -८-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
28 April 2015, Tuesday


निमित तो बन जाना चाहिए की गौओं के लिए कोई भी सवाल उठे तो एक स्वर में सबके साथ शामिल हो जाना चाहिए हिन्दुस्थान में गौओं का वध नही होना चाहिए महात्मा गांधी ने जब स्वराज्य नही मिला था, उस समय घोषणा की थी यह बात पहले उठ चुकी थी की  हिन्दुस्तान में गाय कटनी बन्द होनी चाहिए उन्होंने कहाँ की  ‘हिन्दुस्तान में गौ हत्या बन्द होनी चाहिए ’  का सवाल उठाना ठीक है, मेरी भी यही इच्छा है की ‘मैं गोहत्या को बन्द कर दूंगा ’ सम्भव है आज वे यदि जीवित होते तो शायद अपनी कही हुई बाते याद करके गोहत्या गोहत्या बन्द करते वे तो है नही, अब किसको कहे ? हिन्दुस्तान में स्वराज्य पाने का उनका आदेश और उद्देश्य दोनों था, तो स्वराज्य तो मिल गया, उसकी सिद्धि करने के लिए हम लोगों को चेष्टा करनी चाहिए, हमारे देश में गाय का कटना एकदम बन्द हो जाय इसके लिए बहुत से उपाय है पहले तो गायों की वृद्धि का उपाय करना चाहिए और गौ हत्या बन्द होनी चाहिए   
भगवान राम के वनवासकाल में राक्षस मनुष्य को मारकर उनका माँस खा जाते थे, मनुष्यों की हड्डियों को देख कर भगवान् राम की आँखों में आसू आ गए और उन्होंने भुजा उठाकर यह प्रतिज्ञा की की पृत्वी को राक्षसों से हीन कर दूंगा और सब आश्रम में जा-जाकर उन्होंने मुनियों को सुख दिया था
निसिचर हीन करऊ महि भुज उठाई पन कीन्ह
सकल मुनिन्ह के आश्रम्ही जाई जाई सुख दीन्ह ।।......शेष अगले ब्लॉग में            
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!