।।
श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
आषाढ़ शुक्ल, अष्टमी, शनिवार, वि० स० २०७१
कर्मयोग -९
गत ब्लॉग से आगे.....निष्काम कर्मयोगी पवित्र और
एकान्त स्थान में स्थित होकर भी शरीर, इन्द्रिय और मन को स्वाधीन किये हुए
परमात्मा की शरण हुआ प्रशान्त और एकाग्र मन से
श्रद्धा और प्रेमपूर्वक परमात्मा का ध्यान करता है ।
व्यवहारकाल में कर्मयोगी कर्मों के
फल और आसक्ति को त्यागकर समत्वबुद्धि से भगवदआज्ञानुसार भगवदर्थ कर्म करता है,
इसलिए उसे कर्म नही बाधं सकते; क्योकि राग-द्वेष ही बाधने वाले है ।
भगवान् की आज्ञा से भगवदर्थ कर्म
किये जाने के कारण कर्मयोगी में कर्तापन का अभिमान भी निरभिमान के समान ही है ।
निष्काम कर्मयोगी व्यव्हारकाल में
भगवान की शरण होकर निरन्तर भगवान् को याद रखता हुआ भगवान् के आज्ञानुसार सम्पूर्ण
कर्मों को भगवान् की प्राप्ति के लिए ही करता है ।
कर्मयोगी फलासक्ति को त्यागकर
कर्मों को इश्वरअर्पण कर देता है, इसलिए उनका कर्मों से सम्बन्ध नही रहता ।
-सेठ जयदयाल गोयन्दका, कल्याण वर्ष
८८, संख्या ६, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!