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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण, चतुर्दशी, सोमवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-जयदयाल जी गोयन्दका के कुछ आश्वासन-१४-
गत ब्लॉग से आगे….....सेठ जी कोई चमत्कार करने या अपनी महत्ता बढ़ाने के लिए
भविष्यवाणी इत्यादि कदापि न करते थे, लेकिन सहजता में उनके मुख से कुछ बाते निकली
जो आज भी जीवन में उतारकर देखी जा सकती है-
किसी से पुछा की सेठजी मुझे काम, क्रोध आदि काफी सताते हैं
मैं क्या करूँ ? सेठजी बोले की जब ऐसा समय हो तो कह दिया करों की क्या तुमने हमे
सूना समझ लिया है ? मैं जयदयाल का सत्संगी हूँ, फिर वे तुम्हे नहीं सतायेंगे ।
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प्रवचन के दौरान सेठजी के मुहँ से अनायास निकल गया की
गीता-तत्वविवेचनी टीका के प्रारम्भ में नम्र निवेदन है, उसको जो नित्य पढ़ेगा उसका
में ऋणी रहूँगा और जो उसे जीवन में ले आयेगा, वह मुझे बेच सकता है, अर्थात मुझे जब
चाहे प्रगट कर सकता है । गीता जी को जीवन में ले आयेगा वह भगवान् को बेच सकता है,
यानी उनको जब चाहे प्रगट कर सकता है ।
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सेठजी ने एक दिन कहा था की भगवान् कृष्ण ने लोगों को ऐरे की
(एरका घास) धार से तारा, रामजी ने सरयू के धार से तारा, इसी तरह मैं पुस्तकों और
सत्संग से लोगों को तारता हूँ । जयदयाल जी गोयन्दका तो ब्रह्मलीन हो गए, लेकिन
अपना आत्म-कल्याण करने के लिए उनके द्वारा लिखित तथा उनके प्रवचनों के आधार पर
प्रकाशित पुस्तके उपलब्ध है ।
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नित्य बलिवैश्वदेव करने पर उनका बड़ा जोर रहता था । वे कहा
करते थे की बलिवैश्वदेव करने वाला पूरे विश्व को भोजन देता है । वह विश्वम्भर के
तुल्य हो जाता है ।
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एक दिन प्रवचन के समय सेठजी बोले की यदि कोई भी भाई जिसने
झूठ, कपट, चोरी करते हुए व्यापार किया है, वह मेरी बात मान कर आगे तीन साल तक
सत्यता, इमानदारी पूर्वक व्यापार करे तो उसको तीन साल की अपेक्षा बाद में तीन साल
में कोई घाटा नहीं रहेगा, यदि घाटा रहेगा तो उसकी पूर्ती मैं स्वयं करूँगा । जिन लोगों
ने ऐसा किया उन्हें काफी लाभ हुआ ।
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ये आश्वाशन कैसे है इनको तो व्यवहार में लाने वाला ही समझ
सकता है । ......
शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!