※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -१०-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
30 April 2015, Thursday


गोचर भूमि छोड़ना भी बड़ी भरी सेवा है गायों को घर में रख कर उनकी सेवा करना तो एक नंबर है ही, हर एक प्रकार से हमको गाय की सेवा करनी है जैसे गऊशाळा है, इसमें अपनी शक्ति के अनुसार सभी भाई लोग मदद करते ही है, उसमे और विशेष मदद करनी चाहिए आजकल ब्राह्मणों को गऊदान किया जाता है, वह दान देना तो बहुत उत्तम है ही, किन्तु यदि कोइ ब्राह्मण गऊ लेकर उसका पालन नही कर सके और बिक्री कर दे या किसी प्रकार से वह कसाई के हाथ चली जाये तो वह ब्राह्मण भी नरक में जायेगा और गोदान करने वाला भी इसलिए ब्राह्मण उसे अपने घर में रख कर उसका पालन करे गऊ दान की महिमा शास्त्र में लिखी भरी पड़ी है ऐसी परिस्थति में आजकल समय में किसी को गऊ देना हो तो गऊ शाला में भेज दे गऊशाला में गऊ के दूध का अधिक दाम देना भी गऊ की सेवा है आजकल बहुत से गऊशालाएं चंदे से ही चल रही है एक महात्मा बहुत उच्चकोटि के थे, उनका नाम था मंगलनाथ उनके नाम से ऋषिकेश में एक गऊशाला है हम सभी उसके मेम्बर है, जिससे किसी भी प्रकार गऊशाला कायम रहे उसमे तीन-चार हज़ार रुपया यहाँ से सहायता मिल जाती है, वह वर्षो से इसी प्रकार चल रही है उससे गऊओं की सेवा हो रही है और अपने को दूध मिल रहा है नही तो इक्कठा इतना दूध कहाँ से मिलता ......शेष अगले ब्लॉग में            

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -९-

 ।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
29 April 2015, Wednesday


उस समय ऋषि-मुनियों को राक्षस लोग खा जाया करते थे और आजकल के मनुष्य ही राक्षस है, वे गायों को खाकर चारों और हडियों के ढेरी लगा रहे है संसार में जब जायदा अत्याचार होता है तब भगवान के बहुत-से जो भक्त होते है, उनमे वे प्रेरणा करते है इस प्रकार वे वह काम कर लेते है तो भगवान् को आना नही पडता इसलिए हमलोग ही भगवान् के भक्त बनकर अगर इस काम को करना चाहे तो भगवान् की मदद पाकर हमलोग भी कर सकते है, जैसे अर्जुन ने भगवान् की मदद पाकर युद्ध में असाधारण वीरों को भी मार डाला इसी प्रकार कम तो करने वाले भगवान् ही है, हम लोग तो केवल निमितमात्र बनते है अत: कम-से-कम निमितमात्र तो बनना ही चाहिए एक तो हर एक भाईयों  को अपनी जैसी-जितनी शक्ति हो उसके अनुसार गोचर-भूमि छोडनी चाहिए यदि यह शक्ति न हो तो घर में एक दो गाय रखनी चाहिए यदि इतनी भी शक्ति न हो तो यही प्रतिज्ञा करनी चाहिए की हम गऊ का ही दूध पीयेंगे, भैस का दूध नही पीयेंगे इससे भी गायों को मदद मिलेगी और जैसे भी हो किसी प्रकार से भी गायों की सर्वदा मदद करनी चाहिये ......शेष अगले ब्लॉग में            

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -८-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
28 April 2015, Tuesday


निमित तो बन जाना चाहिए की गौओं के लिए कोई भी सवाल उठे तो एक स्वर में सबके साथ शामिल हो जाना चाहिए हिन्दुस्थान में गौओं का वध नही होना चाहिए महात्मा गांधी ने जब स्वराज्य नही मिला था, उस समय घोषणा की थी यह बात पहले उठ चुकी थी की  हिन्दुस्तान में गाय कटनी बन्द होनी चाहिए उन्होंने कहाँ की  ‘हिन्दुस्तान में गौ हत्या बन्द होनी चाहिए ’  का सवाल उठाना ठीक है, मेरी भी यही इच्छा है की ‘मैं गोहत्या को बन्द कर दूंगा ’ सम्भव है आज वे यदि जीवित होते तो शायद अपनी कही हुई बाते याद करके गोहत्या गोहत्या बन्द करते वे तो है नही, अब किसको कहे ? हिन्दुस्तान में स्वराज्य पाने का उनका आदेश और उद्देश्य दोनों था, तो स्वराज्य तो मिल गया, उसकी सिद्धि करने के लिए हम लोगों को चेष्टा करनी चाहिए, हमारे देश में गाय का कटना एकदम बन्द हो जाय इसके लिए बहुत से उपाय है पहले तो गायों की वृद्धि का उपाय करना चाहिए और गौ हत्या बन्द होनी चाहिए   
भगवान राम के वनवासकाल में राक्षस मनुष्य को मारकर उनका माँस खा जाते थे, मनुष्यों की हड्डियों को देख कर भगवान् राम की आँखों में आसू आ गए और उन्होंने भुजा उठाकर यह प्रतिज्ञा की की पृत्वी को राक्षसों से हीन कर दूंगा और सब आश्रम में जा-जाकर उन्होंने मुनियों को सुख दिया था
निसिचर हीन करऊ महि भुज उठाई पन कीन्ह
सकल मुनिन्ह के आश्रम्ही जाई जाई सुख दीन्ह ।।......शेष अगले ब्लॉग में            
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -७-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
27 April 2015,Monday


दूसरी बात चारा घास और अन्न सब पैदा होता है गाय जो कुछ खाती है उसके अनुसार स्वयं खाद पैदा कर देती है , तीसरी बात यह है की भगवान् स्वाभाविक ही वर्षा करते है संसार में जितने भी प्राणी है, पशु-पक्षी, कीट-पतंग सबके लिए भगवान् सोच-समझकर हिसाब लगा करके वर्षा और अन्न पैदा करते है और आवश्यकता होती है तो उससे अधिक भी पैदा करते है फिर अपने को क्या चिंता है ! आज यदि वर्षा न हो तो क्या जल से खेती करके हम जी सकते है यह सोचना चाहिए की संसार में जो कुछ काम हो रहा है वह भगवान् की नजरो में हो रहा है, ऐसा सोच कर भगवान् पर इतना तो भरोसा करना ही चाहिए की जो पैदा करता है वही जिलाता है और समय पर उसे समाप्त करता है हम बीच में पड़ कर उसकी क्यों पंचायत करे इसलिए हर एक प्रकार से हमे गऊ की रक्षा करनी चाहिए इसमें हमलोगों को केवल निमित बनना है, करने वाले तो सब भगवान् है, मेरा किया होता क्या है ? भगवान् अर्जुन गीता में कहते है की ‘हे सव्यसाची अर्जुन ! तू निमितमात्र हो जा; क्योकि बहुत से योद्धा तो मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए है, तू नही भी मारेगा तो भी सब मरेंगे, मैं तुम्हे केवल निमित बनाता हूँ
‘निमितमात्रं भव सव्यसाचिन
‘ऋतेअपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
भगवान् हम लोगों को केवल निमित बनाते है ......शेष अगले ब्लॉग में     
       
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

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रविवार, 26 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -६-

 ।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
26 April 2015, Sunday


दूसरी बात यह है की जिसे आप अपनी यथाशक्ति कर सकते है-हम गाय का दूध पीते है, इसलिए हमे हर एक प्रकार से गाय की सेवा करनी चाहिए जहाँ कही गौ-रक्षा आन्दोलन हो उसमे भाग लेना चाहिए, गायों की हिंसा बन्द हो जानी चाहिए कुछ लोग कहते है की यदि गाय कटना बिलकुल बन्द हो जायेंगी तो बूढी गायों को घास और चारा कहाँ से मिलेगा चारा पैदा करने वाले भगवान संसार में मौजूद है, भगवान् कही मरा नही है उसके भरोसे पर आप गौओं का पालन करे
इस विचार से तो यह सवाल पैदा हो सकता है की जो बूढ़े-बूढ़े आदमी हो गए है, उनको मार डालना चाहिए; क्योकि वे निक्कमे हो गए वे काम तो कुछ करते नही, अन्न खा जाते है, जवान आदमी के हिस्से का अन्न खा जायेंगे तो जवान आदमी खाने बिना मरेंगे, बूढ़े आदमी को खिलाने से कोई जवान मरा है आज तक ? सब बेवकूफी की बात है, बेसमझी की बात है इतने जंगल हमारे हिन्दुस्तान में पड़े है, लाखों गायें जंगलों में रह कर अपना जीवन निर्वाह कर सकती है, घास खा कर जी सकती है, इसलिए उन गायों को हम जंगलों में छोड़ दे तो अपनी पूरी आयु पाकर वे मरेंगी और चरेंगी जंगलों में   और  दूसरी बात यह है की उन गायों को हम खेत में रखकर चराए तो आप हिसाब लगा कर देखे गऊ से जो गोबर होता है, उसी तथा जो गाय मूत्र करती है उससे खेती की उपज में वृद्धि होती है गौमूत्र से खेती अधिक पैदा होती है एक मन खाद दी जाती है तो उसी कई मन अनाज पैदा होता है ......शेष अगले ब्लॉग में            

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

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शनिवार, 25 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -५-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
25 April 2015, Sturday


मॉस के विषय में होटलों में खानसा में सभी धर्म-जाति के होते है, उनमे कोई जाति का भेद नही रहता वहां कोई शुद्धि नही रहती, कोई अंडे, माँस मदिरा रखते है इनका नाम लेने से मनुष्य को पाप लगता है मैं जो उनके नाम का उच्चारण करता हूँ, वह उनके निषेध के लिए करता हूँ इसलिए शायद पाप नही लगे इस विषय में तो सौगंध ही कर लेनी चाहिए की किसी भी होटल में नही जाना है दूसरी उत्तम बात यह है की चमड़े का सामान काम में लाना ही नही है; क्योकि मालूम नही होता की यह चमडा अपने से मरी गाय का है या मारी गयी गाय का, मरी हुई गाय का चमडा उतारा गया है या चमडा उतार कर फिर वह मारी गयी है चमड़ा चाहे पहले उतारे या बाद में, दोनों में पाप है चमडा उतार कर मारे तो और ज्यादा पाप है इसलिए चमडा काम में नही लाना चाहिए यदि चमडा काम में लाते है और उसके विषय में कहाँ जाता है की यह ‘खादी प्रतिष्ठान का चमडा है, मरी हुई गऊ का है, अपनी मौत से मरी हुई गऊ का चमड़ा है, मारी हुई गऊ का नहीं, तो हमारा इतना विरोध नही है उसको काम में लाया जा सकता है, जब आपको पूरी जानकारी हो जाय की वह चमडा अपने से मरी हुई ही गाय का है, तब भी यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए की जो गायें चमड़े के लिए, माँस के लिए मारी जाती है, उन गायों के चमड़े के जूता वगैराह काम में नही लाऊंगा   गायों के चमड़ों के जूतों का और होटलों में जाने का त्याग कर देना चाहिए किसी भी होटल में जाकर खाना या होटल की चीज मँगाकर या रेल में होटल की चीज मँगाकर खाना आपको जचे तो एकदम सदा के लिए त्याग देनी चाहिए; क्योकि कितने वर्ष जीओगे, आखिर में तो मरोगे ही ऐसे कलंकित होकर संसार से क्यों जाय   ऐसा करना अपने कुल में, जाति में, देश में कलंक लगाना है आप यदि ठीक समझे तो ‘परमात्मा की जय’ बोलकर इसकी स्वीकृति दे और प्रतिज्ञा स्वीकार करे’ ......शेष अगले ब्लॉग में   
         
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -४-

 ।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
24 April 2015, Friday


मॉस के विषय में मनु जी ने बतलाया है की हिंसा करने वाले, उसमे सम्मति देने वाले, बिक्री करने वाले, पकाने वाले और खाने वाले-ये सभी सामान भाव से पाप के भागी होते है इस बात को सुन कर आप सबको इसके विरोध में आज से ही प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए की जिन होटलों में गौ माँस पकाया जाता है, हम कभी उन होटलों में नही जायेंगे कुछ लोग कहते है की हम होटलों में तो जाते है पर माँस नही खाते माँस भले ही न खाओं पर उसका रस दाल में, भात में, परसनेवाली चम्मच आदि के द्वारा पड जाता होगा, सारे सामानों में चम्मच पडती ही होगी, हाथ वही, संसर्ग वही उसके परमाणु तो आ ही जाते होंगे इसलिए होटलों में न जाने की शपथ लेनी चाहिए होटलों में न जाने से मर तो जायेंगे नही, होटलों में गए बिना भी संसार बहुत लोग जी रहे है, कोई मर नही रहे है यह एक मामूली बात है इसलिए हम लोगों को यह प्रतिज्ञा कर ही लेनी है की किसी भी होटल में जाकर हम भोजन नही करेंगे यह भी मामूली बात है, उत्तम बात तो यह है की बाजार की कोई भी चीज नही खायी जाय, चाहे खोमचे की हो या मिठाई हो अथवा पान हो या चाय ; क्योकि बाजार की सभी चीजे अपवित्र, चीनी अपवित्र, जल अपवित्र-सभी अपवित्र इनका त्याग न हो सके तो कम से कम होटलों में खाने का त्याग तो कर ही देना चाहिए ......शेष अगले ब्लॉग में      
      
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

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गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -३-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
23 April 2015, Thursday


मॉस के विषय में मनु जी ने बतलाया है की हिंसा करनेवाले, उसमे सम्मति देने वाले, बिक्री करने वाले, पकाने और खाने वाले-ये सभी सामान-भाव से पाप के भागी होते है इस बात को सुन कर आप सबको इसके विरोध में आज से ही प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए की जिन होटलों में गौ मॉस पकाया जाता है, हम कभी उन होटलों में नही जायेंगे कुछ लोग कहते है की हम होटलों में तो जाते है पर मॉस नही खाते  मॉस भले ही न खाओ पर उसका रस दाल में, भात में, परसने वाली चम्मच आदि के द्वारा पड जाता होगा, सारे सामानों में चम्मच पड़ती ही होगी, हाथ वही, संसर्ग वही उसके परमाणू तो आ ही जाते है इसलिए होटलों में न जाने की शपथ लेनी चाहिए होटलों में न जाने से मर तो जायेंगे नही, होटलों में गए बिना भी बहुत लोग जी रहे है, कोई मर नही रहे है यह एक मामूली बात है इसलिए हमलोगों को यह प्रतिज्ञा कर ही लेनी है की किसी भी होटल में जाकर भोजन नही करेंगे यह भी मामूली बात है इसलिए हमलोगों को यह प्रतिज्ञा ही कर लेनी चाहिये की किसी भी होटल में जाकर हम भोजन नही करेंगे यह भी मामूली बात है, उत्तम बात यह है की बाजार की कोइ चीज न खाई जाय; चाहे खोमचे का हो या मिठाई हो अथवा पान हो या चाय;  क्योकि बाजार की सभी चीजे अपवित्र होती है उनमे घी अपवित्र, चीनी अपवित्र, जल अपवित्र-सभी अपवित्र इतना त्याग न कर सके तो कम से कम होटलों में खाने का त्याग तो कर ही देना चाहिए          ......शेष अगले ब्लॉग में    
        
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

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बुधवार, 22 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -२-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
22 April 2015, Wednesday


कुछ सज्जन कलकत्ते के कसाईखाने में गए थे गौओं की हत्या किस प्रकार होती है, इसके विषय में उन्होंने बताया की गौओं के ऊपर गरम  खूब खौलता हुआ पानी छिड़का जाता है, जिससे उनका चमडा मुलायम हो जाता है खौलते पानी की छिड़क कर लाठियों से उसको मारा जाता है , जिससे चमडा फूल जाय और खूब मुलायम हो जाय इसके बाद उसके जीते ही उसका उसका चमड़ा उतारा जाता है, चमड़ा उतारते हुए वह कांपती, डकराती-छ्टपटाती, तड़प-तड़पकर मर जाती है किसी-किसी कसाईखाने में तो गाय को मार-मारकर उसका चमडा उतारा जाता है, ऐसी भी बात सुनी है और किसी में ऐसा सुना है की पहले चमडा उतार लिया जाता है फिर वह मर जाती है या उसका कत्ल कर दिया जाता है उनका कहना है की चमडा पहले इसलिए उतार लिया जाता है की जिससे जायदा मुलायम रहे यह भी बताते है की के जो जुटे बनते है, वे एक नम्बर के होते है
इस पाप के भागी छ: होते है (१) गाय को कसाई के हाथ बिक्री करने वाले, (२) गाय के वध के लिए सलाह-आज्ञा देने वाले, (३) गाय को मारने वाले, (४) मॉस खरीदने या पकाने वाले, (५) गौ मासं भक्षण करने वाले और (६) चमडा या अन्य अवयव से बनी वस्तुओं का उपभोग करने वाले ये सभी सामान रूप से पाप के भागी होते है ......शेष अगले ब्लॉग में       
     
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

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मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -१-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
21 April 2015, Tuesday


आजकल इस देश में गोधन का प्रतिदिन हास् होता जा रहा है, जिससे गोदुग्ध एवं कई लाभों के अभाव में हाहाकार मचा हुआ है शास्त्रत: और लोकत: विचार करके देखे तो मालूम होगा की धनों में गोधन एक प्रथम सरक्षणीय है अत: हम सब को अपनी शक्ति के अनुसार अपने गोधन की सेवा करनि चाहिए हम सब यदि गौओं की सेवा न करे तो यह हम सब कृतघ्नता ही कही जायेगी
वास्तव में गौ की सेवा-के विषय में कहने का मैं अधिकारी भी नही नही हूँ ; क्योकि जैसे आप लोग दूध पीते है ऐसे ही मैं भी दूध पीता हूँ गौ सेवा आप भी नही करते और मुझसे भी नही बनती इस कारण भी मैं अधिकारी नही हूँ अच्छे पुरुष, जिन्होंने गौओं की सेवा की है, उनके द्वारा तथा शास्त्र के द्वारा अपने को जो शिक्षा मिल रही है, उसको आधार बना कर हम लोगों को गौ सेवा करनी चाहिए
पूर्व के ज़माने में नन्द के यहाँ लाखों गाये थी विराट के पास करीब एक लाख गाये थी दुःख की बात है इस इस समय गौएँ काफी मात्रा में मारी जा रही है यह क़ानून है की १४ वर्ष से कम आयु की गौएँ न मारी जाय, किन्तु यह कानून केवल सरकारी कागजों में ही है यह कानून काम में लाने के लिए नही बनाया गया है, केवल लोगों को दीखाने के वास्ते बनाया गया है, ताकि लोगों में उतेजना न हो छोटे-छोटे बछड़े-बछिया भी मारे जाते है; क्योकि उनका चमडा मुलायम होता है, बढ़िया होता है अपने आप मर जाने वाली गौ का चमडा कठोर होता है, उनके जुते ख़राब और सस्ते होते है और जीवित गौ का या बछड़े-बछिया का चमडा उतारा जाय तो वह ज्यादा मुलायम होता है मुलायम चमड़े से बनी हुई टोपी, घडी, बैग और जूता आदि महंगे बिकते है ......शेष अगले ब्लॉग में       
     
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

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